सास बहू का मनमुटाव

  • आज जिस विषय पर हम बात कर रहे हैं उस पर अभी तक टीवी, मीडिया, संगोष्ठी एवं सामाजिक स्तर पर खुले मंच से कभी बात नहीं हुई है, लेकिन यह एक राष्ट्रीय समस्या है जिससे लगभग हर घर त्रस्त है, सबसे पहले यह समस्या है इसे स्वीकार करना पड़ेगा और सामाजिक स्तर पर चर्चा करना बहुत आवश्यक है।

राजस्थान की सबसे बड़ी सामाजिक समस्या सास-बहू-ननद ‌का तनाव है, इसके कारण पुरुषों के साथ साथ बच्चे और धंधा भी पिसते हैं। बुखार की बजाय अब यह कैंसर बन गया है और बढ़ता ही जा रहा है, कब तक छुपायेंगे ?

 

इसके बारे में खुलकर चर्चा होनी चाहिए। कई बार लोग कहते हैं कि यह फालतू की चर्चा है, महिलाओं को समझा नहीं सकते अतः इस विषय पर चर्चा बेकार है तो मैं उन्हें कहना चाहूंगा की मंगल ग्रह पर जाने के बारे में किसी ने सोचा और विचार विमर्श शुरू हुआ तो आज रॉकेट के सहारे मंगल ग्रह पर जाना भी संभव हुआ है।

 

सास-बहू मनमुटाव की समस्या है, इस बात को स्वीकार कर लेना चाहिए, परिवार एवं समाज का माहौल स्वस्थ नहीं है तब तक शिक्षा, शासन, मीडिया, रिश्ते सही तरीके से गतिशील नहीं हो सकते हैं, फलस्वरुप जीवन में ना तो शांति रहेगी और ना ही हम समृद्धि की ओर बढ़ पाएंगे, समाज की प्रथम इकाई घर है जब तक घर व्यवस्थित नहीं होगा तब तक अन्य संबंधित सोपान परवान नहीं बढ़ पायेंगे, हम रोज अखबार में पढ़ते हैं कि दो बच्चों को लेकर टांके में कूदी महिला या केरोसिन से जलकर मरी विवाहिता इत्यादि अनेक खबरों की तह में जाने पर पता चलता है की सास बहू का मनमुटाव चल रहा था। इन खबरों को हम मानव होकर तमाशा देख रहे हैं, ईश्वर ने हमें बुद्धि दी है तो हमें इस पर चर्चा करके समाधान निकालने के प्रयास जरूर करने चाहिए क्योंकि आर्थिक रूप से विकसित होने के लिए पहले मानसिक रूप से विकसित होना चाहिए ।

 

कारण-

 

• मनोवैज्ञानिक कारण – मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड के अनुसार मां का बेटे के प्रति और बाप का बेटी के प्रति आकर्षण अधिक होता है, यह एक स्वाभाविक धारणा है, समाजशास्त्र के अनुसार जब बेटे का व्याह होता है तो मां सबसे ज्यादा खुश होती है लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है तो मां को लगता है कि जो बेटा पहले मुझे ज्यादा समय देता था, पूरे दिन मेरे चारों ओर घूमता था, किसी चीज की जरूरत होने पर वह मुझसे ही मांगता था लेकिन अब शादी के बाद उससे कम बात करता है, साथ में कम समय व्यतीत करता है या उससे दूर जा रहा है, खाने के लिए मां की बजाय अपनी पत्नी को कहता है इत्यादि चीजों से मां के मन में असुरक्षा की भावना पनपने लगती है कि अब मेरा बेटा मेरे से दूर जा रहा है यह मनोवैज्ञानिक आधार है क्योंकि इस दुनिया में सच्चा वात्सल्य एवं अनकंडीशनली प्यार केवल मां का ही होता है बाकी का प्यार तो दिखावटी, जरूरती एवं स्वार्थी होता है, मां बेटे का संबंध सदैव प्यारा होता है चाहे बेटा अनपढ़ हो, नशा करता हो, मानसिक विक्षिप्त हो या दिव्यांग हो लेकिन मां सदैव बेटे के चारों ओर घूमती रहती हैं। मां बेटे का कभी मनमुटाव हो तो भी मां ही शाम को पूछती हैं कि बेटा खाना खा लिया, तबीयत कैसी है ? अर्थात बेटे से दूर होने की भावना मां के मन में बैठ जाती है जिससे वह स्वयं को असरक्षित महसूस करती है।

 

• सामाजिक बंधन परिवार में कई तरह के सामाजिक बंधन होते हैं, जिसमें सामाजिक रस्मों रिवाज को निभाने को लेकर कई तरह के दबाव होते हैं जबकि आद‌मी स्वतंत्र प्रकृक्ति का होता है उसे बंधन स्वीकार नहीं होता है, वह बंधन से मुक्ति चाहता है जबकि महिला (मां-वह-बहिन) सदैव पुरुष को अपने बंधन में रखना चाहती हैं इसलिए मां बहिन और बहू चाहती हैं कि पुरुष दूसरों के बजाय हमारी सुनें, हमारा कहा मानें।

 

• सांस्कृतिक मूल्य – हमारा सांस्कृतिक मूल्य है बड़ों का सम्मान करना एवं उनकी बात को बिना तर्क वितर्क के स्वीकार करना। सास बड़ी है तो बहु को सास की हर बात माननी एवं बाप बड़ा है तो बेटे बेटी को उनकी हर बात माननी पड़ेगी अर्थात हमारी सामाजिक व्यवस्था इस प्रकार की हैं कि बड़ों से हमें कोई सवाल जवाब के बिना उनकी हर बात शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन झुका कर माननी पड़ेगी। सास यह मान लेती है कि मैं बड़ी हूं इसलिए बहू को मेरी हर बात एवं व्यवहार को मानना ही पड़ेगा।

 

• वातावरण- शादी के बाद जब लड़की एक वातावरण को छोड़कर दूसरे वातावरण में जाती है तो उसे वहां एडजस्टमेंट होने में समय लगता है क्योंकि ससुराल परिवार के सभी लोग उसके लिए नये हैं, ससुराल का रहन सहन, बोलचाल, कल्बर भिन्न है। फिर रिश्तो के नाम पर अनेक सामाजिक बंधान जिसमें सास, काकी सास, नंनद, जेठ-जेठानी इत्यादि के साथ-साथ घर के कामकाज में एडजस्टमेंट में समय लगता है इसलिए सास को नई नवेली बहू को समायोजन के लिए समय देना चाहिए लेकिन समयाभाव के कारण सास का बहू के साथ घर्षण/ टकराव शुरू हो जाता है।

 

• अन्य संबंधों का प्रभावः-

 

→ पति पत्नी के आपसी तालमेल एवं घर परिवार के मूल्यों, रिश्तेदारी तथा जिम्मेदारियां की आपसी समझ का भी कई बार असर पड़ता है। → ननद एवं बुआ का प्रभाव आटा साटा प्रथा में नंनद का प्रभाव कम ही देखने को मिलता है क्योंकि दोनों परिवार परस्पर संतुलन की स्थिति में रहते हैं लेकिन दूसरे प्रकार में कई बार नंनद एवं बुआ सासु का व्यवहार भी उत्प्रेरक की भांति होता है जो अभिक्रिया में परोक्ष रूप से भाग नहीं लेते हैं लेकिन एक फोन से क्रियाकारकों (सास बहू) के मध्य अभिक्रिया प्रारंभ जरूर करवा देते हैं।

 

• ससुर की भूमिका सास बहू के तनाव में कई बार ससुर की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण होती है क्योंकि ससुर असली समस्याओं को समझाते हुए भी धृतराष्ट्र की भुमिका में आ जाते हैं तब समस्या और विकराल हो जाती है।

 

• शैक्षणिक कारण- पढ़ाई लिखाई में सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा का अभाव है, वर्तमान शिक्षण व्यवस्था में फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स, हिस्ट्री, इकोनॉमिक्स के बारे में तो बताया जाता है लेकिन घर परिवार की बातें नहीं बताई जा रही है कि बड़े होने पर घर परिवार को किस प्रकार चलाएं, आपसी रिश्तेदारी को कैसे निभाएं, परिवार के सदस्यों के साथ तालमेल किस प्रकार बिठायें, जटिल परिस्थिातियों से लड़ना, मानव जीवन के लिए जियो और जीने दो की भावना सहित परस्पर सम्मान की भावना हमारे शिक्षण व्यवस्था से गायब है अर्थात” भणया पर गणया नहीं’।

 

• सोशल मीडिया का प्रभाव सोशल मीडिया ने “डिजिटल संस्कृति’ को जन्म दिया है। यह एक ऐसी संस्कृति है जो हमारे ऑनलाइन इंटरैक्शन द्वारा उत्तरोत्तर परिभाषित होती जा रही है, अब हम अपना खाली समय व्यक्तिगत रूप से देखने के बजाय ऑनलाइन सामाजिककरण में व्यतीत करने की अधिक संभावना रखते हैं। यह हमारे सामाजिक कौशल और सार्थक संबंध बनाने की हमारी क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है हम अपनी बेहतरीन जिंदगी को सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं, इसलिए जोड़े कभी-कभी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की तुलना दूसरों की रोमांचक जिंदगी से करते हैं, जिससे विनाशकारी तुलनाएँ पैदा हो सकती हैं। एक नकारात्मक सामाजिक तुलना या किसी चीज से चूकने का डर (FOMO) यह विचार है कि कोई और आपसे बेहतर समय बिता रहा है या आपसे ज्यादा सफल है (आप उनके ऑनलाइन जीवन से जो देख सकते हैं)। यह धारणा हमारे मानसिक स्वास्थ्य को कई तरह से प्रभावित कर सकती है। सोशल मीडिया पर दूसरों द्वारा पोस्ट की गई चीजों के कारण ईर्ष्या और खुद पर निराशा महसूस करना अवसाद को बढ़ाने और समग्र स्वास्थ्य में गिरावट से जुड़ा है।

 

तकनीक के कारण मोबाइल फोन, सोशल मीडिया, टीवी सीरियल में दिखाए जाने वाले दोगलेपन से समाज दूषित हो रहा है, टीवी सीरियल के जबरदस्ती आकर्षक रिवाजों से समाज की सामाजिक व्यवस्था गड़बड़ा रही है, उपरोक्त सभी कारणों से घर परिवार का माहौल बिगड़ रहा है जिसका प्रभाव सास बहू के संबंधों पर भी पढ़ रहा है

 

• परिवार पर प्रभाव –

 

बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव छोटे बच्चों पर इन संबंधों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि छोटे बच्चे मनोवैज्ञानिक रूप से संवेदनशील होते हैं अतः घर के इन झगड़ों से उनकी विकास प्रक्रिया बाधित होती है, बच्चों का संवेगात्मक विकास अवरोध हो जाता है क्योंकि मनोविज्ञान के अनुसार 6 वर्ष तक के बच्चों को हमें अधिकाधिक समय देना चाहिए जो प्रतिस्पर्धात्मक युग में माता-पिता के द्वारा संभव नहीं हो पाता है लेकिन दादा-दादी अधिक समय दे सकते हैं जो इन बच्बों के विकास में सहायक होता है लेकिन खराब पारिवारिक माहौल के कारण यह संभव नहीं हो पाता है।

 

• पारिवारिक सदस्यों के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है, कई बार यह संबंध इतने अधिक बिगड़ जाते हैं कि बात आत्महत्या तक पहुंच जाती है जो परिवार को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से गर्त में ले जाते हैं, निम्न एवं मध्यमवर्गीय परिवार में सास बहू के खराब संबंधों के चलते 8-10 वर्षों तक आर्थिक रूप से परेशान रहते हैं, कई बार दहेज संबंधी कानूनी रूप से घर की लड़ाई सड़क पर आ जाती हैं तो फिर कई तरह की परेशानियों से संपूर्ण परिवार को गुजरना पड़ता है।

 

• पति सैंडविच बन जाता है इन खराब संबंधों के कारण पति की स्थिति बड़ी हास्यास्पद हो जाती है, “पत्नी का पक्ष ले या मां का इस स्थिति में पति सैंडविच बन जाता है अर्थात आगे कुआं पीछे खाई।

 

समाधान –

 

• व्यापक चर्चा – समाज के विभिन्न मंचों पर इसके बारे में बात होनी चाहिए। छुपाना अब घातक होने लगा है। परिवार बिखर रहे हैं, दादा-दादी, पोते-पोती का अद्भुत संबंध टूट रहा है, तलाक और आत्महत्याएँ हो रही हैं, बच्चे दहशत में जीते हैं और पुरुष बीच में अटके हुए कुंठित रहते हैं। समाज में निष्पक्ष रूप से व्यापक एवं वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित विचार विमर्श शुरू होना चाहिए, सास चाहती है कि बहू पैर दबाये और उसकी बेटी अपनी सास का गला दबाए, इस पॉलिटिक्स में दोनों परिवार बर्बाद होते हैं अतः सास बहू को एक दूसरे के प्रति सम्मान और स्वस्थ संवाद के जरिए समस्या का समाधान सुनिश्चित करना होगा।

 

• कॉलेजों में सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा पर जोर देते हुए घर परिवार, रिश्ते नाते के रहन-सहन, सास बहू, पति पत्नी के संबंधों के बारे में अनिवार्य विषय के रूप में अध्ययन करवाना चाहिए जिससे कि वह पारिवारिक रिश्तों के साथ सामंजस्य बिठाते हुए अपने भावी जीवन को आनंददायी तरीके से जी सके ।

 

• समाधान केवल सास बहू के पास ही है अन्य लोग अच्छे या बुरे वातावरण का निर्माण कर सकते हैं, बहु को बेटी मानना ही पड़ेगा क्योंकि बहू भी अपने घर का त्याग करके हमारे घर आई है तो उसका मान सम्मान होना ही चाहिए, सास को समझना पड़ेगा की एडजस्ट होने में समय लगेगा अर्थात सास को मां बनना पड़ेगा क्योंकि सास भी कभी बहू थी। वर्तमान समय में सास द्वारा बहू को चयनित करके बेटे की शादी बड़े धूमधाम से करती हैं फिर घर आने पर गली मोहल्ले में उसकी कमियां गिनाती हैं जो कि गलत है क्योंकि बहू का चयन सास ससुर ने ही किया है तो यह तार्किक बात हमें समझनी पड़ेगी।

 

• बहु को भी नई भूमिका में खुद को तैयार होना पड़ेगा साथ ही बहू को समझाना पड़ेगा कि बेटे के प्रति मां के मन में भरपूर वात्सल्य होता है अतः मां बेटे को दूर करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। घर में सास बहू को एक दूसरे के प्रति सम्मान एवं स्वस्थ संवाद के माध्यम से परस्पर सहयोग करते हुए सास को बहू की और बहू को सास की अच्छी बातों की प्रशंसा करनी चाहिए अर्थात ठूठिज्योड़ा मत रहो” ।

 

• सास बहू को समझना चाहिए कि आद‌मी की रुचि बदलती रहती है, छोटा बच्चा पूरे दिन मां के चारों ओर घूमता रहता है, थोड़ा बड़ा होने पर दोस्तों के साथ, शादी होने पर पत्नी के साथ, थोड़ा और बड़ा होने पर बेटे बेटी और समाज को समय देना प्रारंभ करता है, परिवार में बड़े लोगों (मां-बाप- दादा) को यह मान लेना चाहिए कि हमारा मान सम्मान बड़े होने पर स्वतः ही है इसलिए समय के साथ विकेंद्रीकरण रूप से जिम्मेदारियां का हस्तांतरण बेटे बेटी एवं बहू को कर देना चाहिए ना कि मरघट तक कुंची कमर से बंधी हो, क्योंकि हमारे यहां सामाजिक व्यवस्था में रिटायरमेंट का अभाव देखने को मिलता है अतः मानव को सामाजिक जीवन में भी 50 वर्ष की आयु के बाद घर परिवार की जिम्मेदारियां धीरे-धीरे पारिवारिक सदस्यों को हस्तांतरित करते हुए मार्गदर्शक की भूमिका में आ जाना चाहिए।

 

ओशो का कहना है कि तुम पिता हो इसलिए तुम्हारा सम्मान जरूरी नहीं है बल्कि पिता की तरह दिखों, बड़ों की तरह व्यवहार करो क्योंकि जबरदस्ती समाज एवं परिवार से सम्मान छीन नहीं सकते हैं, सम्मान सदैव हमारे व्यवहार को मिलता है ना की बाजार से खरीद सकते हैं।

 

‘राजनैतिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों में गिरावट राजनीतिक मूल्यों से सांस्कृतिक मूल्य प्रभावित हो गए हैं, राजा या नवाब कैसा भी हो जनता बिना सवाल किया उसे झेले तो यह जो झलने की प्रवृत्ति है यह बड़ी खतरनाक है। दास कैपिटल में कार्ल मार्क्स ने कहा है कि परिवार भी शोषण की इकाई है, यहां भी बड़े अपने से छोटे का शोषण करते हैं, हर वह व्यक्ति सामंती हैं जो घर परिवार समाज में अपने से छोटे व्यक्ति को दबाकर रखना चाहता है इसलिए राजनीतिक मूल्यों में सुधार नितांत आवश्यक है ।

 

सारांश- इस समस्या का समाधान तभी होगा जब मूल कारणों का पता होगा, मूल कारण मनोवैज्ञानिक है, मां बेटे का लगाव, फिर कुछ

 

सामाजिक मान्यताएँ हैं और कुछ कुरीतियां हैं।

 

सभी पक्षों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए और दूसरों के लिए जीने का भाव आना चाहिए। रिश्तों में लेने की बजाय देने का भाव ज्यादा हो तो वे सुंदर और सार्थक हो जाते हैं। झूठे अहंकार की जगह प्रेम का विस्तार होना चाहिए, महिलाऐं समाज में पुरुषों के आगे चलते हुए पथ प्रदर्शक का काम करें ऐसी मेरी सोच है।

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