हल्दी घाटी युद्ध

हल्दी घाटी युद्ध // महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए हल्दी घाटी युद्ध की सच्चाई 

कुछ दिन पहले एक नया इतिहास बताया गया कि हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने अकबर को हरा दिया था. अभी तक इससे ठीक उलटी बात बताई जाती थी. ये भी प्रचलित बात है कि महाराणा प्रताप अपनी कसम को बचाए रखने के लिए घास की रोटियां खाते रहे. जंगलों में रहते रहे. कुछ दिन पहले राजस्थान सरकार के मंत्री मोहनलाल गुप्ता ने सुझाव दिया था कि हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की जगह राणा प्रताप को विजेता दिखाया जाए।
 
अब राजस्थान के इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने एक शोध जारी किया है. शर्मा के हिसाब से राणा प्रताप हल्दीघाटी युद्ध के बाद ज़मीनों के पट्टे जारी करते रहे. इस हिसाब से महाराणा प्रताप की जीत हल्दीघाटी के युद्ध में हुई थी. अगर वो हारे होते तो लोगों को पट्टे कैसे जारी करते?
 
लोगों का एक खास तबका इस नए ‘इतिहास’ को बहुत पसंद कर रहा है. लेकिन सच्चाई क्या मानी जाए? आइए नजर डालते हैं जून 1576 में हुए हल्दीघाटी के इस युद्ध की ऐसी बातों पर जो अब तक हमारी जानकारी में रही है. ये जानकारियां सदियों तक सार्वजनिक दायरे में थी, और कैसे अब एकाएक सदियों के तथ्यों से परे एक नया इतिहास रचने की कोशिश हो रही है. पढ़ें और खुद तय करें :-
1. हल्दीघाटी में नहीं हुई थी लड़ाई :-
हल्दीघाटी राजस्थान की दो पहाड़ियों के बीच एक पतली सी घाटी है. मिट्टी के हल्दी जैसे रंग के कारण इसे हल्दी घाटी कहा जाता है. इतिहास का ये युद्ध हल्दीघाटी के दर्रे से शुरू हुआ लेकिन महाराणा वहां नहीं लड़े थे, उनकी लड़ाई खमनौर में चली थी.
 
मुगल इतिहासकार अबुल फजल ने इसे “खमनौर का युद्ध” कहा है.
 
राणा प्रताप के चारण कवि रामा सांदू ‘झूलणा महाराणा प्रताप सिंह जी रा’ में लिखते हैंः
 
महाराणा प्रताप अपने अश्वारोही दल के साथ हल्दीघाटी पहुंचे, परंतु भयंकर रक्तपात खमनौर में हुआ।
 
2. बस चार घंटों में बदल गया सब :- 
हल्दीघाटी के युद्ध की दो तारीखें मिलती हैं. पहली 18 जून और दूसरी 21 जून. इन दोनों में कौन सी सही है, एकदम निश्चित कोई भी नहीं है. मगर सारे विवरणों में एक बात तय है कि ये युद्ध सिर्फ 4 घंटे चला था।
 
3. हॉलीवुड फिल्म ‘300’ वाली योजना थी मगर राणा जी चला नहीं पाए :- 
2006 में रिलीज हुई डायरेक्टर ज़ैक श्नाइडर की हॉलीवुड फिल्म है ‘300’. इतिहास के एक चर्चित युद्ध पर बनी इस फिल्म में राजा लियोनाइडस अपने 300 सैनिकों के साथ 1 लाख लोगों की फौज से लड़ता है. पतली सी जगह में दुश्मन एक-एक कर अंदर आता है और मारा जाता है।
राणा प्रताप ने इसी तरह की योजना बनाई थी. मगर मुगलों की ओर से लड़ने आए जनरल मानसिंह घाटी के अंदर नहीं आए. मुगल जानते थे कि घाटी के अंदर इतनी बड़ी सेना ले जाना सही नहीं रहेगा. कुछ समय सब्र करने के बाद राणा की सेना खमनौर के मैदान में पहुंच गई. इसके बाद ज़बरदस्त नरसंहार हुआ. कह सकते हैं कि 4 घंटों में 400 साल का इतिहास तय हो गया।
 
4. सेनाओं में नहीं थी बराबरी :- 
राणा प्रताप की सेना मुगलों की तुलना में एक चौथाई थी. सेना की गिनती की ही बात नहीं थी. कई मामलों में मुगलों के पास बेहतर हथियार और रणनीति थी. मुगल अपनी सेना की गिनती नहीं बताते थे।
मुगलों के इतिहासकार बदांयूनी लिखकर गए हैं, “5,000 सवारों के साथ कूच किया.” दुश्मन को लग सकता था कि 5,000 की सेना है मगर ये असल में सिर्फ घो़ड़ों की गिनती है, पूरी सेना की नहीं. इतिहास में सेनाओं की गिनती के अलग-अलग मत हैं।
ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है कि 22,000 राजपूत 80,000 मुगलों के खिलाफ लड़े थे. ये गिनती इसलिए गलत लगती है क्योंकि अकबर ने जब खुद चित्तौड़ पर हमला किया था तो 60,000 सैनिक थे. ऐसे में वो मान सिंह के साथ अपने से ज़्यादा सैनिक कैसे भेज सकता था?
अगर राजस्थानी इतिहासकार मुहणौत नैणसी, मुगल इतिहासकार अब्दुल कादिर बंदायूनी, अबुल फजल और प्रसिद्ध हिस्टोरियन यदुनाथ सरकार के आंकड़ों को मिलाकर एक औसत निकाला जाए तो 5,000 मेवाड़ी और 20,000 मुगल सैनिकों के लड़ने की बात मानी जा सकती है।
 
5. मगर ताकत का बंटवारा सिर्फ सैनिकों की गिनती से नहीं होता :- 
मेवाड़ के पास बंदूकें नहीं थीं. जबकि मुगल सेना के पास कुछ सौ बंदूकें थीं।
राणा प्रताप की तरफ से प्रसिद्ध ‘रामप्रसाद’ और ‘लूना’ समेत 100 हाथी थे. मुगलों के पास इनसे तीन गुना हाथी थे. मुगल सेना के सभी हाथी किसी बख्तरबंद टैंक की तरह सुरक्षित होते थे और इनकी सूंड पर धारदार खांडे बंधे होते थे।
राणा प्रताप के पास चेतक समेत कुल 3,000 घोड़े थे. मुगल घोड़ों की गिनती कुल 10,000 से ऊपर थी।
मेवाड़ की तरफ से तोपों का इस्तेमाल न के बराबर हुआ. खराब पहाड़ी रास्तों से राजपूतों की भारी तोपें नहीं आ सकती थीं. जबकी मुगल सेना के पास ऊंट के ऊपर रखी जा सकने वाली तोपें थीं।
लड़ाई में राजपूतों ने ऊंटों का भी इस्तेमाल नहीं किया. जबकि मुगल इतिहासकार मुहम्मद हुसैन लिखते हैं:-
मुगल फौज में ऊंटों के रिसाले आंधी की तरह दौड़ रहे थे।
 
6. राणा के बदले झाला को जान देनी पड़ी :- 
युद्ध के बीच में एक समय पर राणा प्रताप को मुगलों ने घेर लिया. उनके दूर से दिखते मुकुट को ही निशाना बनाया जा रहा था. ऐसे में सरदार मन्नाजी झाला ने राणा का मुकुट खुद पहन लिया. कहा जाता है कि राणा उस समय तक बुरी तरह घायल हो गए थे. मुगल सेना ने मन्ना जी को राणा समझ कर निशाना बनाना शुरू किया. मन्ना जी कुछ ही देर तक संघर्ष कर पाए मगर अपनी जान देकर उन्होंने महाराणा प्रताप की जान बचा ली।
 
आज रोज़ एक नया इतिहास लिखा जा रहा है. वॉट्स्ऐप की खबरों को तथ्य बनाकर पेश किया जा रहा है, कविताओं को तथ्यों की तरह से कोट किया जा रहा है. ऐसे में इतिहास के इस युद्ध के बारे में मुगल और मेवाड़ी इतिहासकारों के तथ्य हमने आपको दे दिए हैं. इस युद्ध में कौन जीता होगा कौन हारा होगा, आप खुद तय करें।
 
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