शिक्षा – जरुरी क्यों ?
संसार से मुक्त होने की जो अवधारणा मोक्ष है वह ज्ञान से जुड़ी हुई है, इसी धारणा ने शिक्षा को जन्म दिया है हवा, पानी, भोजन, कपड़े, घर, इलाज यह सारी चीज जीवधारी को मिलती है तो वह कौन सी चीज है जो हमें जानवरों से बेहतर बनाती है? वह है दिमाग और दिमाग को खास बनाती हैं शिक्षा भृगुपुत्र कश्यय ने पैदा होते ही कहा” भूख लगी है ?” भूख बड़ी चीज है, आपकी जिज्ञासा बार-बार बनी रहे तो आप समाज में कारगर अंग बन जाएंगे ।
अच्छा इंसान कौन होता है ? जो हमें पशुता से अलग करें, जो दूसरों की तकलीफ को महसूस करें, दूसरों की मदद करें एवं अपना हित छोड़ समाज हित को सर्वोपरि समड़ो ।
शिक्षा क्यों जरूरी है ? तो हम पाएंगे कि शिक्षा वह जरूरी हथियार है जिसे हम समाज व दुनिया को बदलने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, समाज वही आगे बढ़ेगा जो शिक्षित होगा। एक छोटा सा देश ब्रिटेन शिक्षा में अग्रणी था तो दुनिया पर छा गया।
पतंजलि का कहना है कि इंद्रियों का जन्म ज्ञानार्थ हुआ है, गीता में लिखा है कि मनुष्य का जन्म ज्ञान प्राप्तिहित हुआ है.. जैसे सूर्य पर से ग्रहण अथवा मेघ दूर हो जाते हैं वैसे ही आत्मा अंधकार को दूर कर देती है, भोग विलास में उलझकर ना रह जाए तो हम ज्ञान के नजदीक आ पाएंगे क्योंकि ज्ञान ही आपका मोक्ष है।
शोपेन हॉबर” फ्रांस के विद्वान हुए हैं वे कहते हैं कि लिखने का एक टुकड़ा पेन दुनिया बदल सकता है….
बर्नाड शॉ के अनुसार जो व्यक्ति अपना दिमाग नहीं बदल सकते हैं वे कुछ भी नहीं बदल सकते हैं, हमें आदान-प्रदान करते समय वस्तु की बजाय आइडिया आपस में बदले जाए तो विचारों का संग्रह बढ़ सकता है (काश… सुहासिणी जीमाते समय कपड़ों की बजाय सकारात्मक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त विचारों का आदान-प्रदान पुस्तकों या मिनी वार्तालाप संगोष्ठी द्वारा होता तो कितना बेहतर होता)
रूमी एक सूफी संत हुए हैं उनसे किसी ने पूछा कि” अमर होने का तरीका बताएं” तो उन्होंने बताया कि हो सकते हैं। भारत में एक पेड़ है उसके फल खाकर अमर हो सकते हैं और वह पेड़ है” शिक्षा का” जिसके फल खाकर अमर हुआ जा सकता है। हर बच्चा विशेष और खास होता है, उसकी अपनी काबिलियत होती है यह हमने” तारे जमीन पर” एवं ” श्री इडियट में देखा है… हम अपने विचार थोपते हैं कि “ये बनो वो बनो” मगर बच्चा क्या बनना चाहता हैं यह हम भुला देते हैं ।
हमारे बालक पढ़ लिखकर समाज की सेवा करें, हमारे बच्चों से यह पूछना शुरू करें कि आज आपने कितनों की मदद की? समाज के लिए क्या किया ? तो वह” जनसमष्टि” की सोचने लगेगा, लेकिन अभी हम नंबर गेम में उलझे हुए कि बच्चे ने नंबर कितने लाए हैं, यह सवाल स्वार्थी बनाता है। मेरे विचार से वह शिक्षक अधिक सफल है जिसने बच्वों के मन मस्तिष्क में तार्किक सवाल पैदा करने सिखा दिये है, ऐसा बच्चा जिंदगी की रेस में सदैव अपने काम को अलग तरीके से करेगा ।
‘रूमी” ने कहा है कि” हिंड से कब तक शिक्षा जरूरी है” अतः देवालय से पहले खुद को पुस्तकालय की तरफ मोड़िये जहां आपकी सच्ची दोस्त पुस्तकें इंतजार कर रही है, इंसान बेवफा हो सकता है लेकिन पुस्तकों से आपने सच्ची दोस्ती कर ली तो वे कभी बेवफाई नहीं करेगी, पुस्तकालय आपके व्यक्तित्व में निखार लाकर भीड़ के भीतर अलग पहचान देती है।
मुझे व्यक्तिगत कमजोरी महसूस हुई है तो वह है” जिज्ञासा का अभाव” बच्चे सवाल नहीं करते” नचिकेता” की तरह… सवाल करना ही ज्ञान की प्राप्ति है, अंत में दार्शनिक नील्शे से बात पूरी करता हूं” जो सांप अपनी केंचुअली नहीं बदल सकता उसे मरना पड़ता है” हम “अज्ञानता अनावश्यकता” की सारी कैंचुअली शिक्षा के द्वारा उतार सकते हैं तो आइये मिलकर शिक्षित बने व शिक्षित बनाए।
” जंग लगा है तलवारों को बंदूकें बेमानी है, तोप पड़ी है चिड़ियाघर में लिखती कलम कहानी है “